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बुधवार, 17 मार्च 2010

तुलादान

हमने
दुकानदार को एक रूपये का
सिक्का देते हुए कहा
टॉफी देना भाई
दुकानदार बोला
आपको एक रूपये का सिक्का दिखाते हुए
जरा भी शर्म नहीं आई
ऐसा कीजिए
टॉफी फ्री में ले लीजिए और
इसे जेब में रख लीजिए
जेब में वापिस रखने का कुछ नहीं लगता है
यह सिक्का अब नहीं चलता है
तभी एक भिखारी दिखा
मैंने वह सिक्का
भिखारी को दिया
भिखारी ने कटोरा हटा लिया
मुझे ऊपर से नीचे तक देखा
और कहा
पैरों में बूट
बदन पर सूट
गले में टाई कसते हो और
जो चलन से बाहर है
ऐसा सिक्का क्यों देते हो
शर्म आना चाहिए
अरे
देना है तो
कागज का नोट दो
पुराना नोट भी हम खुशी से लेंगे और
बदले में ढेरों आशीष देंगे
पर यह कलदार नहीं लेंगे ।
मैंने सिक्का उठाकर देखा
और सोचा
यह तो कागज के नोट की तरह
कहीं भी नहीं फटा है
और भिखारी
सिक्का न लेने पर डटा है
सरकार प्रतिदिन नए सिक्के छाप रही है और
भिखारी को लेने में शर्म आ रही है
इसलिए
सिक्का न चलने का कारण
सिक्के से ही पूछता हूँ ।
जब मैंने
सिक्के से पूछा
तुम चलन से बाहर क्यों हो गए हो
व्यर्थ में ही सरकार की छाती पर
मूंग दल रहे हो
तो
दु:खी मन से सिक्का बोला
बाबूजी
हम पूरी तरह राजनीतिक हो गए हैं
इसलिए
चलन से बाहर हो गए हैं
और
यह तो एक परम्परा बन गई है
जब से नेताओं का
सिक्कों से तुलादान होने लगा है
सिक्कों की पूरी कौम ही
चलन से बाहर हो गई है ।

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